मैन्यूफैक्चरिंग पर जोर, लेकिन इकोसिस्टम अभी भी आधा-अधूरा
आने वाले बजट में सरकार मैन्यूफैक्चरिंग पर तेजी से काम करने की तैयारी में है। मगर अभी इसका इकोसिस्टम पूरी तरह से तैयार नहीं है। ऐसे में सवाल है कि सरकार कौन से ऐसे कदम उठाए जो इसके लिए कारगर साबित हों। ये इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसका उद्देश्य रोजगार की समस्या को दूर करना है। आइये इसके बारे में जानते हैं।

आगामी बजट में भी सरकार का जोर मैन्यूफैक्चरिंग बढ़ाने पर होगा। हालांकि बड़ा सवाल यह है कि इसका पूरा इकोसिस्टम तैयार करने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे। फिलहाल हम उस पड़ाव पर खड़े हैं, जहां मैन्यूफैक्चरिंग बहुत कुछ आयात पर निर्भर करती है। यह देखना रोचक होगा कि इस बजट में आत्मनिर्भर मैन्यूफैक्चरिंग की दिशा में क्या कदम बढ़ाए जाते हैं, क्योंकि इसका वास्तविक लाभ तभी मिलेगा।
हाल ही में टेक्सटाइल मंत्रालय की ट्रेड सलाहकार शुभ्रा ने एक कार्यक्रम में उद्यमियों से कहा था कि उन्हें अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए बड़े स्तर पर निवेश करना चाहिए ताकि माल खरीदारी के मामले में वैश्विक ब्रांड का भारत में भरोसा पैदा हो। उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर भारतीय मैन्यूफैक्चरिंग इकोसिस्टम को लेकर जो धारणा है, उसे बदलने की जरूरत है। उद्यमी भी इससे सहमत हैं कि अभी मैन्यूफैक्चरिंग का समग्र इकोसिस्टम नहीं है और यही वजह है कि आयात बढ़ रहा है और जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग का योगदान पिछले 15 सालों से 13त्न से 15 प्रतिशत के बीच है।
इकोसिस्टम के अभाव में मैन्यूफैक्चरिंग गति प्रभावित
पिछले चार सालों से तमाम प्रयासों के बावजूद इकोसिस्टम के अभाव में मैन्यूफैक्चरिंग गति नहीं पकड़ रही है। हालांकि देश की विकास दर जब तेज रहती है तो भी आयात बढ़ता है। गत वित्त वर्ष 2023-24 में वस्तुओं का निर्यात 437 अरब डालर जबकि आयात 677 अरब डालर रहा। 2022-23 में वस्तुओं का निर्यात 451 अरब डालर का तो आयात 715 अरब डालर रहा।
यूनिट लगाने के लिए नियमों को बनाया जाए सरल निर्यातक शरद कुमार सराफ कहते हैं 12 साल पहले उन्होंने चीन के नन¨जग में स्टील का ढक्कन बनाने वाली यूनिट लगाई और वहां मात्र सात दिनों में जमीन की उपलब्धता से लेकर हमारा बैंक खाता तक खुल गया। आज भी यूनिट चल रही है और वहां जाने की जरूरत तक नहीं होती है। भारत में भी यूनिट लगाने के लिए नियमों का ऐसा ही सरलीकरण करना होगा। भारत में जमीन उपलब्धता सबसे बड़ी चुनौती है। उद्योग विभाग की तरफ से उद्यमियों के लिए लैंड बैंक बनाने का काम भी शुरू किया गया था, लेकिन उसका फायदा मिलता नहीं दिख रहा है।
सिर्फ मुख्य उत्पाद बनाने से काम नहीं चलेगा
जय सहाय उद्यमियों का कहना है कि भारत में तिरुपुर को छोड़ कहीं भी उत्पाद विशेष के लिए क्लस्टर विकसित नहीं हो पाया। तिरुपुर में कपड़ा निर्माण के लिए डाइंग, निटिंग, वीविग, स्टिचिंग जैसी सुविधा के साथ पूरी सप्लाई चेन (माल मंगाने से लेकर तैयार माल को भेजने) की सुविधा है। फेडरेशन आफ इंडियन एक्सपोर्ट आर्गेनाइजेशंस (फियो) के सीईओ व महानिदेशक अजय सहाय कहते हैं कि सिर्फ मुख्य उत्पाद बनाने से काम नहीं चलेगा। हम मेन प्रोडक्ट्स के उत्पादन प्रोत्साहन के लिए पीएलआइ जैसी स्कीम ले आए, लेकिन उनसे जुड़े पार्ट्स व अन्य आइटम की घरेलू स्तर पर सप्लाई चेन सुनिश्चित नहीं करने से आयात बढ़ेगा। इन दिनों अमेरिका चीन से आयात होने वाले उत्पाद पर शुल्क बढ़ाता जा रहा है और यह भारत के लिए अवसर है। हालांकि इसका लाभ तभी मिलेगा जब क्लस्टर स्तर पर बड़े पैमाने पर उत्पादन की सुविधा हो।
बड़े निवेश के रास्ते में रोड़ा हैं श्रम कानून
जटिल श्रम कानून भी बड़े निवेश के रास्ते में रोड़ा हैं। श्रमिकों को जरूरत के हिसाब से नौकरी पर रखने और उन्हें हटाने की आजादी नहीं है। उद्यमियों ने बताया कि श्रम विभाग के इंस्पेक्टर उनसे सुविधा शुल्क तक वसूलते हैं। पिछले पांच सालों से श्रम संहिता लागू करने की कवायद चल रही है, लेकिन उसे लागू नहीं किया जा सका है।
इलेक्ट्रानिक्स और फार्मा में ही शुरू हो पाया उत्पादन
सरकार 14 सेक्टर के लिए चार साल से पीएलआइ स्कीम चला रही है, लेकिन इसके तहत सिर्फ दो सेक्टर इलेक्ट्रानिक्स और फार्मा में ही पूर्ण रूप से उत्पादन शुरू हो पाया है। इलेक्ट्रानिक्स सेक्टर से जुड़ा अधिकतर कच्चा माल आयात होता है और यहां वैल्यू एडीशन कर उसकी एसेंब¨लग की जाती है।
मैन्यूफैक्चरिंग लागत कम करना बड़ी चुनौती औद्योगिक संगठनों के मुताबिक बहुराष्ट्रीय कंपनियां सिर्फ भारतीय बाजार के लिए निवेश नहीं करना चाहती हैं। निर्यात का अवसर मिलने पर ही वे यहां निवेश करेंगी। यह तभी संभव होगा जब भारत की मैन्यूफैक्चरिंग लागत कम होगी।
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