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Sunday, June 1, 2025

सड़कों पर होने वाली मौतों का आंकड़ा कम नहीं हो रहा, बनाना होगा नेशनल रोड ट्रैफिक इंजरी सर्विलांस सिस्टम

सड़कों पर होने वाली मौतों का आंकड़ा कम नहीं हो रहा, बनाना होगा नेशनल रोड ट्रैफिक इंजरी सर्विलांस सिस्टम

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय इस पर चिंता लगातार जताता है कि तमाम प्रयासों के बावजूद सड़क हादसे और उनमें होने वाली जनहानि का आंकड़ा कम नहीं हो रहा है। बेशक यातायात नियमों के प्रति चालकों की लापरवाही एक बड़ा कारण है लेकिन साथ ही समस्या यह भी है कि सरकार भी निगरानी और सुधार के लिए जरूरी तंत्र को अब तक बेहतर नहीं बना सकी है।

बनाना होगा नेशनल रोड ट्रैफिक इंजरी सर्विलांस सिस्टम (सांकेतिक तस्वीर)

HIGHLIGHTSआइआइटी दिल्ली के टीएनआइपी सेंटर की रिपोर्ट में जताई गई है चिंता
राज्यों के स्तर पर डाटा संग्रह की व्यवस्था बनाने की विशेषज्ञों ने दी सलाह


सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय इस पर चिंता लगातार जताता है कि तमाम प्रयासों के बावजूद सड़क हादसे और उनमें होने वाली जनहानि का आंकड़ा कम नहीं हो रहा है। बेशक, यातायात नियमों के प्रति चालकों की लापरवाही एक बड़ा कारण है, लेकिन साथ ही समस्या यह भी है कि सरकार भी निगरानी और सुधार के लिए जरूरी तंत्र को अब तक बेहतर नहीं बना सकी है।

भारत में अभी तक नेशनल रोड ट्रैफिक इंजरी सर्विलांस सिस्टम ही नहीं

आईआईटी दिल्ली के ट्रांसपोर्टेशन रिसर्च एंड इंजरी प्रिवेंशन सेंटर की रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई गई है कि भारत में अभी तक नेशनल रोड ट्रैफिक इंजरी सर्विलांस सिस्टम ही नहीं है।

विडंबना है कि सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के पोर्टल से भी राज्यों के आंकड़े मेल नहीं खाते। इंडिया स्टेटस रिपोर्ट आन रोड सेफ्टी-2024 रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने कहा है कि प्रभावी सड़क सुरक्षा कार्यक्रम चलाने के सभी पहलुओं से संबंधित विश्वसनीय दुर्घटना डाटा सिस्टम अनिवार्य है।


हादसों में मृत्यु या चोट का आंकड़ा क्या है पता नहीं


दुर्घटना के जोखिमों का आकलन करने, व्यवधानों की पहचान करने और सबसे प्रभावी दृष्टिकोण रखते हुए संसाधनों को आवंटित करने के लिए रणनीति विकसित करना आवश्यक है। सड़क सुरक्षा प्रबंधन के लिए इन पहलुओं का सटीक आकलन और निगरानी जरूरी है कि हादसों में मृत्यु या चोट का आंकड़ा क्या है?

हेलमेट के उपयोग का प्रचलन कैसा है और प्रवर्तन की क्या स्थिति है। विशेषज्ञों ने माना है कि इस सबके लिए पुष्ट डाटा की आवश्यकता होती है। रिपोर्ट में सामने आया है कि भारत में राष्ट्रीय सड़क यातायात चोट निगरानी प्रणाली नहीं है। राष्ट्रीय स्तर पर और अधिकांश राज्यों में यातायात दुर्घटनाओं का विवरण इस तरह तैयार किया जाता है, जिसका उपयोग नीति-नियोजन के लिए नहीं किया जा सकता है।


घातक दुर्घटनाओं में सबसे अधिक भूमिका ट्रकों की है


उदाहरण के लिए, एफआइआर से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर आइआइटी की यह रिपोर्ट कहती है कि घातक दुर्घटनाओं में सबसे अधिक भूमिका ट्रकों की है, जबकि ऐसी जानकारी सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट में उपलब्ध नहीं है।

इतना ही नहीं, मंत्रालय ने इंटीग्रेटेड रोड एक्सीडेंट डाटाबेस और ई-डिटेल्ड एक्सीडेंट रिपोर्ट सिस्टम राज्यों को सुझाया है। इनमें पुलिस, अस्पताल और परिवहन विभाग के माध्यम से डाटा जुटाया जाता है। राज्य धीरे-धीरे इसे लागू कर रहे हैं, लेकिन इसकी विश्वसनीयता भी संदेह के घेरे में दिख रही है।


उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले ने दी दुर्घटनाओं की रिपोर्ट
दरअसल, रिपोर्ट में ही उदाहरण दिया गया है कि उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के डाटा में रिपोर्ट की गई दुर्घटनाओं और ईडीएआर सिस्टम में दर्ज की गई जानकारी के बीच बहुत अंतर पाया गया है।

यह रिपोर्ट तैयार करने वाले विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि राष्ट्रीय स्तर पर रोड ट्रैफिक इंजरी सर्विलांस सिस्टम बनाने के साथ ही उच्च गुणवत्ता वाला डाटा एकत्र करने के लिए राज्य स्तर पर क्षमता विकसित करनी होगी।


राज्य स्तर पर दुर्घटना निगरानी जरूरी
इसमें वर्गीकरण होना चाहिए कि कौन सी दुर्घटनाएं अधिक घातक थीं और कौन सी कम। इसके साथ ही राज्य स्तर पर दुर्घटना निगरानी इकाइयां स्थापित करने की आवश्यकता बताई गई है, ताकि डाटा का सांख्यिकीय विश्लेषण करने की क्षमता भी विकसित हो।

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