सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वे नक्सल हिंसा से प्रभावित राज्य के निवासियों के पुनर्वास और शांति के लिए पर्याप्त कदम उठाएं। शीर्ष कोर्ट ने राज्य में सुरक्षा बलों और सलवा जुडूम एक्टिविस्टों द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों से जुड़े 18 साल पुराने मामलों को बंद कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वे नक्सल हिंसा से प्रभावित राज्य के निवासियों के पुनर्वास और शांति के लिए पर्याप्त कदम उठाएं।
शीर्ष कोर्ट ने कही ये बात
शीर्ष कोर्ट ने राज्य में सुरक्षा बलों और सलवा जुडूम एक्टिविस्टों द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों से जुड़े 18 साल पुराने मामलों को बंद कर दिया है।
मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों लेकर हुई सुनवाई
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कार्यकर्ता नंदिनी सुंदर द्वारा दायर मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों और अन्य याचिकाओं को बंद किया।
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इनमें 2011 के आदेश का पालन न करने का आरोप लगाया गया था, जिसमें राज्य में नक्सल विरोधी अभियानों में विशेष पुलिस अधिकारियों (एसपीओ) के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया गया था।
राज्य और केंद्र सरकार समन्वित तरीके से कार्य करें
पीठ ने कहा- ''हम पाते हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य में दशकों से उत्पन्न स्थिति को देखते हुए यह आवश्यक है कि ठोस कदम उठाए जाएं ताकि उन क्षेत्रों में शांति और पुनर्वास लाया जा सके। राज्य और केंद्र सरकार समन्वित तरीके से कार्य करें।''
कोई भी कानून न्यायालय की अवमानना नहीं माना जा सकता- पीठ
शीर्ष कोर्ट ने यह भी कहा कि संसद या राज्य विधानसभा द्वारा बनाया गया कोई भी कानून न्यायालय की अवमानना नहीं माना जा सकता। पीठ ने कहा कि कानून का पारित होना विधायी कार्य की अभिव्यक्ति है, इसमें तब तक कोई हस्तक्षेप नहीं होता जब तक कि यह संविधान के खिलाफ न हो।
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