साफ-साफ कहें तो जनता को बुद्धू बनाने की कला में पारंगत होने से जमीनी हकीकत नहीं छिपती - KRANTIKARI SAMVAD

Breaking

Post Top Ad

Monday, June 19, 2017

साफ-साफ कहें तो जनता को बुद्धू बनाने की कला में पारंगत होने से जमीनी हकीकत नहीं छिपती

जुमलों के जरिए तालियां बटोरना या साफ-साफ कहें तो जनता को बुद्धू बनाने की कला में पारंगत होने से जमीनी हकीकत नहीं छिपती। पिछली फरवरी में उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के चुनाव के बीच सरकार ने नोटबंदी के अपने फैसले को उचित ठहराने का भरपूर जतन किया, लेकिन नोटबंदी की वजह से अर्थव्यवस्था को पहुंची चोट के निशान तभी दिखने लगे थे, जो अब पूरी तरह से नुमाया हो चुके हैं।


अर्थव्यवस्था के ताजा जारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2015-16 के मुकाबले देश की विकास दर में 0.8 फीसदी की गिरावट आई है। जानकारों की मानें तो ऐसा नोटबंदी की वजह से हुआ है। इसके अलावा 8 कोर सेक्टर्स में अप्रैल महीने में आई गिरावट की बड़ी वजह कोयला, क्रूड आॅइल और सीमेंट के उत्पादन में कमी भी है। पिछले साल अप्रैल में 8 बुनियादी क्षेत्रों में कोयला, क्रूड आॅइल, नैचरल गैस, रिफाइनरी उत्पाद, फर्टिलाइजर, स्टील, सीमेंट और बिजली की ग्रोथ रेट 8.7 फीसदी थी। जो इस साल सिमट कर महज 2.5 फीसदी तक आ गई। कंस्ट्रक्शन क्षेत्र की ग्रोथ बीते 6 फीसदी थी जो इस साल-3.7 फीसदी पर आ गई। रोजगार को लेकर सरकार पर सवाल उठाए जा रहे हैं। आंकड़ों के लिहाज से देखें तो रोजगार देने वाले विनिर्माण क्षेत्र की ग्रोथ भी 12.7 प्रतिशत से कम होकर 5.3 प्रतिशत रह गई है। तिमाही के आधार पर बात करें तो 2016-17 की चौथी तिमाही यानि जनवरी से मार्च के दौरान जीडीपी ग्रोथ महज 6.1 फीसदी पर अटक गई। जिसके चलते भारत का सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था का ताज भी छिन गया है।


इसी तिमाही के दौरान चीन की विकास दर 6.9 प्रतिशत रही है। तिमाही का यह आंकड़ा चौंकाने वाला भी है और पिछली तिमाही के आंकड़ों को संदेहास्पद बना रहा है। फरवरी में पेश तिमाही आंकड़ों में बताया गया था कि नोटबंदी का आर्थिक विकास दर पर कोई खास असर नहीं पड़ा। सारे संदेहों के उलट नोटबंदी के दौरान भी विकास दर सात फीसद बनी रही। चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री ने उन आंकड़ों से उत्साहित होकर अपनी सरकार की कर्मठता का श्रेय भी लूट लिया और हावर्ड की तुलना हार्ड वर्क से करके विरोधियों पर जमकर निशाना साधा। हालांकि आर्थिक विशेषज्ञों ने उसी समय आंकड़ों पर सवाल खड़ा करते हुए कहा था कि नोटबंदी को सही ठहराने के लिए विकास दर के आंकड़ों से खिलवाड़ किया गया। लेकिन उस वक्त विकास दर आंकड़ों ने हर मंच ऐसी अंगड़ाई ली कि विरोधी चारों खाने चित्त हो गए।


राजनीति में अपनी वाकपटुता से विपक्ष को धरासाई करने की कला बहुत अच्छी बात है लेकिन देश के साथ आंकड़ों की बाजीगरी देश और देशवासियों को छलने जैसा है। इससे देश की अर्थव्यवस्था पर दूरगामी परिणाम होते हैं। खोखली अर्थव्यवस्था का खमियाजा देशों को किस तरह उठाना पड़ता है इसके कई उदाहरण हैं। अच्छा होगा सरकार खुद मियां मिठ्ठू बनने के लिए देश की आर्थिक सेहत से खिलवाड़ न करे।

No comments:

Post a Comment

Post Bottom Ad

Responsive Ads Here

Pages