कैलकुलेशन से पक गया था ये स्टूडेंट… और बना डाला कमरे जितना बड़ा कैलकुलेटर!
एक स्टूडेंट हावर्ड एच. ऐकेन फिजिक्स की मुश्किल कैलकुलेशन से पक गया। उसने एक ऐसी मशीन का सपना देखा जो बिना इंसानी दखल के खुद से ही सभी कैलकुलेशन कर सके। IBM के इंजीनियरों ने ऐकेन के साथ मिलकर न्यूयॉर्क के एंडिकॉट में इस बड़ी मशीन को आकार देना शुरू किया। जिसके बाद 7 अगस्त 1944 को पहली बार दुनिया को ऑटोमैटिक इलेक्ट्रो-मैकेनिकल कैलकुलेटर मिला था।

क्या आप जानते हैं आज हमारी जेब में रखा स्मार्टफोन कोई भी मुश्किल कैलकुलेशन कुछ ही सेकंड में कर सकता है, लेकिन क्या आपको पता है कि इस आसान सी सुविधा की शुरुआत एक ऐसी मशीन से हुई थी, जो साइज में कमरे जितने बड़ी थी। जी हां, 7 अगस्त 1944 को पहली बार दुनिया को ऐसी ही एक मशीन मिली, जिसका नाम ‘हार्वर्ड मार्क वन’ था जो दुनिया का पहला ऑटोमैटिक इलेक्ट्रो-मैकेनिकल कैलकुलेटर था। चलिए जानें कैसे जब एक स्टूडेंट का आइडिया तकनीकी क्रांति की नींव बन गया।
एक स्टूडेंट का आइडिया बना तकनीकी क्रांति की नींव
दरअसल, साल 1937 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक स्टूडेंट हावर्ड एच. ऐकेन ने इस ऐतिहासिक मशीन का सपना देखा। फिजिक्स की मुश्किल कैलकुलेशन उन्हें बहुत ही पकाऊ लगती थीं। इसलिए वह ये चाहते थे कि कोई ऐसी भी मशीन जरूर होनी चाहिए जो बिना इंसानी दखल के खुद से ही सभी कैलकुलेशन आसानी से कर सके। हालांकि उन दिनों ये आइडिया एक कल्पना जैसा लग रहा था।
फिर इस तरह हुई शुरुआत
टेक्नोलॉजी की दिग्गज कंपनी IBM ने जब हावर्ड का आइडिया सुना तो उन्हें इसमें कुछ संभावनाएं दिखाई दी और बाद में साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू हो गया। IBM के इंजीनियरों ने ऐकेन के साथ मिलकर न्यूयॉर्क के एंडिकॉट में इस बड़ी मशीन को आकार देना शुरू किया जो आगे चलकर कंप्यूटर टेक्नोलॉजी की दिशा ही बदलने वाली थी।
कैलकुलेटर बना युद्ध का हथियार
द्वितीय विश्व युद्ध भी उस वक्त अपने पीक पर था और अमेरिकी नौसेना को फास्ट और सही कैलकुलेशन करने वाली टेक्नोलॉजी की जरूरत थी। खासकर फायरिंग टेबल, मिसाइल की दिशा और दुश्मन की लोकेशन ट्रैक करने के लिए सही कैलकुलेशन होना बेहद जरूरी था। ऐसे वक्त में इस ‘मार्क वन’ ने बड़ी भूमिका निभाई।
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